इस कॉकटेल का तो नशा ही कुछ और है
ग़म को ख़ुशी के साथ मिला कर शराब पी
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मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया
ज़िंदगानी को अदम-आबाद ले जाने लगा
अब कौन जा के साहिब-ए-मिम्बर से ये कहे
दरख़्तों के लिए
मैं अपने आप से आगे निकलने वाला था
सफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है
सब अपने अपने दियों के असीर पाए गए
अपने होने के जो आसार बनाने हैं मुझे
सरहदें
गुज़रती है जो दिल पर वो कहानी याद रखता हूँ
इक तअल्लुक़ था जिसे आग लगा दी उस ने