मैं अपने आप से आगे निकलने वाला था
सो ख़ुद को अपनी नज़र से गिरा के बैठ गया
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सफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है
दास्तानों में मिले थे दास्ताँ रह जाएँगे
मैं इक थका हुआ इंसान और क्या करता
मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया
मिरे लिए न रुक सके तो क्या हुआ
दरख़्तों के लिए
ज़िंदगी हो तो कई काम निकल आते हैं
मुद्दत के ब'अद आज मैं ऑफ़िस नहीं गया
मैं ही अपनी क़ैद में था और मैं ही एक दिन
कहीं से नीले कहीं से काले पड़े हुए हैं
ख़ुमार-ए-शब में तिरा नाम लब पे आया क्यूँ
मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ