पुराने यार भी आपस में अब नहीं मिलते
न जाने कौन कहाँ दिल लगा के बैठ गया
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सफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है
मेरे होंटों पे तेरे नाम की लर्ज़िश तो नहीं
इस कॉकटेल का तो नशा ही कुछ और है
सरहदें
ज़िंदगी हो तो कई काम निकल आते हैं
अपने होने के जो आसार बनाने हैं मुझे
दास्तानों में मिले थे दास्ताँ रह जाएँगे
अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए
मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया
मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ