दिलों में ज़ख़्म होंटों पर तबस्सुम
उसी का नाम तो ज़िंदा-दिली है
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अपना नफ़स नफ़स है कि शो'ला कहें जिसे
शिद्दत-ए-शौक़ असर-ख़ेज़ है जादू की तरह
एक मुद्दत से इसी उलझन में हूँ
किस शान किस वक़ार से किस बाँकपन से हम
शख़्सिय्यत-ए-फ़नकार मुअ'म्मा नहीं 'वाहिद'
क्यूँ शिकवा-ए-बे-मेहरी-ए-साक़ी है लबों पर
कोई गर्दिश हो कोई ग़म हो कोई मुश्किल हो
वो और हैं किनारों पे पाते हैं जो सुकूँ
शब-ए-फ़िराक़ कई बार गोशा-ए-दिल से
ग़ैर-मुमकिन है कि मिट जाए सनम की सूरत
उफ़ गर्दिश-ए-हयात तिरी फ़ित्ना-साज़ियाँ