आशियाँ जलने पे बुनियाद नई पड़ती है
अक्स-ए-तख़रीब को आईना-ए-तामीर कहो
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(539) Peoples Rate This
शिद्दत-ए-शौक़ असर-ख़ेज़ है जादू की तरह
अँधेरों में उजाले ढूँढता हूँ
राह-ए-तलब की लाख मसाफ़त गिराँ सही
हम वो रह-रव हैं कि चलना ही है मस्लक जिन का
अपना नफ़स नफ़स है कि शो'ला कहें जिसे
हुजूम-ए-ग़म से मिली है हयात-ए-नौ मुझ को
गुल ग़ुंचे आफ़्ताब शफ़क़ चाँद कहकशाँ
इस तरह हुस्न-ओ-मोहब्बत की करो तुम तफ़्सीर
जो दश्त-ए-तमन्ना में हर वक़्त भटकता है
हक़ बात सर-ए-बज़्म भी कहने में तअम्मुल
आज फिर सर-ए-मक़्तल दे के ख़ुद लहू हम ने
का'बा-ओ-दैर-ओ-कलीसा का तजस्सुस क्यूँ हो