ये कैसी बात हुई है कि देख कर ख़ुश है
वो आँसुओं के समुंदर के दरमियान मुझे
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एक दिन ज़ेहन में आसेब फिरेगा ऐसा
ख़ामुशी छेड़ रही है कोई नौहा अपना
पाँव मारा था पहाड़ों पे तो पानी निकला
वहशत दीवारों में चुनवा रक्खी है
रात नादीदा बलाओं के असर में हम थे
बद-गुमानी
मेरी अय्यार निगाहों से वफ़ा माँगता है
शेर-इमदाद-अली का मेडक
फैंटेसी
जान प्यारी थी मगर जान से बे-ज़ारी थी
वही आँखों में और आँखों से पोशीदा भी रहता है
यूँ मिरे पास से हो कर न गुज़र जाना था