रास्ता दे कि मोहब्बत में बदन शामिल है
मैं फ़क़त रूह नहीं हूँ मुझे हल्का न समझ
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हम तंगना-ए-हिज्र से बाहर नहीं गए
अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है
एक कुत्ता नज़्म
अजब कि सब्र की मीआद बढ़ती जाती है
मगर उन सीपियों में पानियों का शोर कैसा था
हादसा ये है कि हम जाँ न मोअत्तर कर पाए
ये कैसी बात हुई है कि देख कर ख़ुश है
नए चराग़ जला याद के ख़राबे में
हैरानी में हूँ आख़िर किस की परछाईं हूँ
हद-बंदी-ए-ख़िज़ाँ से हिसार-ए-बहार तक
इक याद की मौजूदगी सह भी नहीं सकते
मरता लम्हा