उजाले Poetry (page 4)

रुख़ ओ ज़ुल्फ़ पर जान खोया किया

हैदर अली आतिश

कृष्ण कन्हैया

हफ़ीज़ जालंधरी

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए

गोपालदास नीरज

रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

हर एक पल की उदासी को जानता है तो आ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

एक घर अपने लिए तय्यार करना है मुझे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आइना-आसा ये ख़्वाब-ए-नीलमीं रक्खूँगा मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

एक नज़्म

फ़ज़्ल ताबिश

जुगनू हवा में ले के उजाले निकल पड़े

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

जुगनू हवा में ले के उजाले निकल पड़े

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

अपनी पहचान कोई ज़माने में रख

फ़ारूक़ शफ़क़

परिंदे खेत में अब तक पड़ाव डाले हैं

फ़ारूक़ अंजुम

जब तक चराग़-ए-शाम-ए-तमन्ना जले चलो

फ़रहत शहज़ाद

किस उजाले का निशाँ हैं हम लोग

फ़रीद जावेद

मिरे हम-रक़्स साए को बिल-आख़िर यूँही ढलना था

फ़रह इक़बाल

उजाला कैसा उजाले का ख़्वाब ला न सके

एज़ाज़ अफ़ज़ल

सलीक़ा इतना तो ऐ शौक़-ए-ख़ुश-कलाम आए

एज़ाज़ अफ़ज़ल

दो घड़ी साए में जलने की अज़िय्यत और है

एज़ाज़ अफ़ज़ल

देख कर जादा-ए-हस्ती पे सुबुक-गाम मुझे

एहतिशाम हुसैन

पुर-लुत्फ़ सुकूँ-बख़्श हवाएँ भी बहुत थीं

डॉक्टर आज़म

इस दौर-ए-तरक़्क़ी के अंदाज़ निराले हैं

दिवाकर राही

ऐ इंक़लाब-ए-नौ के उजाले कहाँ है तू

दिलकश सागरी

सियाह ज़ुल्फ़ को जो बन-सँवर के देखते हैं

दिलावर फ़िगार

आख़िरी वक़्त तलक साथ अंधेरों ने दिया

दानिश अलीगढ़ी

ज़िंदगी कर गई तूफ़ाँ के हवाले मुझ को

दानिश अलीगढ़ी

चेहरे पे नूर-ए-सुब्ह सियह गेसुओं में रात

दाएम ग़व्वासी

हम को छेड़ा तो मचल जाएँगे अरमाँ की तरह

डी. राज कँवल

देता था जो साया वो शजर काट रहा है

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

हर एक रात में अपना हिसाब कर के मुझे

भारत भूषण पन्त

चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग

भारत भूषण पन्त

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