चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग

चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग

और जीना पड़ रही है ज़िंदगी बिल्कुल अलग

वो अलग एहसास था जब कश्तियाँ मौजों में थीं

लग रही है अब किनारे से नदी बिल्कुल अलग

और कुछ महरूमियाँ भी ज़िंदगी के साथ हैं

हर कमी से है मगर तेरी कमी बिल्कुल अलग

एक अन-जानी सदा ने क्या पता क्या कह दिया

रूठ कर बैठी है सब से ख़ामुशी बिल्कुल अलग

लफ़्ज़ की दुनिया अलग शहर-ए-मआनी और है

मैं अलग हूँ मुझ से मेरी शाएरी बिल्कुल अलग

आइने में मुस्कुराता मेरा ही चेहरा मगर

आईने से झाँकती बे-चेहरगी बिल्कुल अलग

सोचता हूँ रंग कितने हैं मिरे किरदार में

मैं कभी अपनी तरह हूँ और कभी बिल्कुल अलग

सब अँधेरों से जुदा दिल का अँधेरा जिस तरह

हर उजाले से है घर की रौशनी बिल्कुल अलग

ज़िंदगी की लय बिखरने का सबब शायद यही

साज़ की धुन से है मेरी नग़्मगी बिल्कुल अलग

मुझ को इन सैराबियों ने एक सहरा कर दिया

आज भी लेकिन है मेरी तिश्नगी बिल्कुल अलग

(1067) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Chahaton Ke KHwab Ki Tabir Thi Bilkul Alag In Hindi By Famous Poet Bharat Bhushan Pant. Chahaton Ke KHwab Ki Tabir Thi Bilkul Alag is written by Bharat Bhushan Pant. Complete Poem Chahaton Ke KHwab Ki Tabir Thi Bilkul Alag in Hindi by Bharat Bhushan Pant. Download free Chahaton Ke KHwab Ki Tabir Thi Bilkul Alag Poem for Youth in PDF. Chahaton Ke KHwab Ki Tabir Thi Bilkul Alag is a Poem on Inspiration for young students. Share Chahaton Ke KHwab Ki Tabir Thi Bilkul Alag with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.