कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ
पहन लेता हूँ जब दस्तार तो सर भूल जाता हूँ
Anwar Masood
Wasi Shah
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Gulzar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(738) Peoples Rate This
मैं थोड़ी देर भी आँखों को अपनी बंद कर लूँ तो
हम वो सहरा के मुसाफ़िर हैं अभी तक जिन की
कभी सुकूँ कभी सब्र-ओ-क़रार टूटेगा
उम्मीदों से पर्दा रक्खा ख़ुशियों से महरूम रहीं
उसे इक बुत के आगे सर झुकाते सब ने देखा है
किसी भी सम्त निकलूँ मेरा पीछा रोज़ होता है
घर से निकल कर जाता हूँ मैं रोज़ कहाँ
जुस्तुजू मेरी कहीं थी और मैं भटका कहीं
रिश्तों के जब तार उलझने लगते हैं
ख़ामोशी में चाहे जितना बेगाना-पन हो
हमारे हाल पे अब छोड़ दे हमें दुनिया
मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है