हमारे हाल पे अब छोड़ दे हमें दुनिया
ये बार बार हमें क्यूँ बताना पड़ता है
Gulzar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(742) Peoples Rate This
जाने कितने लोग शामिल थे मिरी तख़्लीक़ में
याद भी आता नहीं कुछ भूलता भी कुछ नहीं
दीद की तमन्ना में आँख भर के रोए थे
फिर वो बे-सम्त उड़ानों की कहानी सुन कर
दामन के चाक सीने को बैठे हैं जब भी हम
इतनी सी बात रात पता भी नहीं लगी
हमारी बात किसी की समझ में क्यूँ आती
दश्त में उड़ते बगूलों की ये मस्ती एक दिन
कितना आसान था बचपन में सुलाना हम को
हम सराबों में हुए दाख़िल तो ये हम पर खुला
अब तो इतनी बार हम रस्ते में ठोकर खा चुके
कब तक गर्दिश में रहना है कुछ तो बता अय्याम मुझे