ज़ुहूर नज़र कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़ुहूर नज़र

ज़ुहूर नज़र कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़ुहूर नज़र
नामज़ुहूर नज़र
अंग्रेज़ी नामZuhoor Nazar
जन्म की तारीख1923
मौत की तिथि1981

वो जिसे सारे ज़माने ने कहा मेरा रक़ीब

वो भी शायद रो पड़े वीरान काग़ज़ देख कर

तन्हाई न पूछ अपनी कि साथ अहल-ए-जुनूँ के

सुनते हैं चमकता है वो चाँद अब भी सर-ए-बाम

पास हमारे आकर तुम बेगाना से क्यूँ हो

न सो सका हूँ न शब जाग कर गुज़ारी है

लुट गया है सफ़र में जो कुछ था

ख़ुद को पाने की तलब में आरज़ू उस की भी थी

घर से उस का भी निकलना हो गया आख़िर मुहाल

बरसों से खड़ा हूँ हाथ उठाए

बाद-ए-तर्क-ए-उल्फ़त भी यूँ तो हम जिए लेकिन

अपनी सूरत बिगड़ गई लेकिन

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

सहरा में घटा का मुंतज़िर हूँ

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

रक्खा नहीं ग़ुर्बत ने किसी इक का भरम भी

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ख़ुद को पाने की तलब में आरज़ू उस की भी थी

इश्क़ में मारके बला के रहे

हयात वक़्फ़-ए-ग़म-ए-रोज़गार क्यूँ करते

हयात वक़्फ़-ए-ग़म-ए-रोज़गार क्यूँ करते

हर घड़ी क़यामत थी ये न पूछ कब गुज़री

दीपक-राग है चाहत अपनी काहे सुनाएँ तुम्हें

दिन ऐसे यूँ तो आए ही कब थे जो रास थे

छोड़ कर दिल में गई वहशी हवा कुछ भी नहीं

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