जाने कितने लोग शामिल थे मिरी तख़्लीक़ में
मैं तो बस अल्फ़ाज़ में था शाएरी में कौन था
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
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मैं अब जो हर किसी से अजनबी सा पेश आता हूँ
आँखों में एक बार उभरने की देर थी
ये क्या कि रोज़ पहुँच जाता हूँ मैं घर अपने
मैं ने सोचा था मुझे मिस्मार कर सकता नहीं
इतनी सी बात रात पता भी नहीं लगी
मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी
चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग
मैं क्या बताऊँ कैसी परेशानियों में हूँ
ख़्वाहिश-ए-पर्वाज़ है तो बाल-ओ-पर भी चाहिए
सच्चाइयों को बर-सर-ए-पैकार छोड़ कर
वर्ना तो हम मंज़र और पस-मंज़र में उलझे रहते
उसे इक बुत के आगे सर झुकाते सब ने देखा है