ईद-ए-नौ-रोज़ दिल अपना भी कभी ख़ुश करते
यार आग़ोश में ख़ुर्शीद हमल में होता
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आज तक अपनी जगह दिल में नहीं अपने हुई
बला-ए-जाँ मुझे हर एक ख़ुश-जमाल हुआ
ब'अद फ़रहाद के फिर कोह-कनी मैं ने की
वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा
पयाम-बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआ
कौन से दिल में मोहब्बत नहीं जानी तेरी
ज़ियारत होगी काबे की यही ताबीर है इस की
सख़्ती-ए-राह खींचिए मंज़िल के शौक़ में
किसी ने मोल न पूछा दिल-ए-शिकस्ता का
आसार-ए-इश्क़ आँखों से होने लगे अयाँ
हुस्न किस रोज़ हम से साफ़ हुआ
दौलत-ए-हुस्न की भी है क्या लूट