हर शब शब-ए-बरात है हर रोज़ रोज़-ए-ईद
सोता हूँ हाथ गर्दन-ए-मीना में डाल के
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बंदिश-ए-अल्फ़ाज़ जड़ने से निगूँ के कम नहीं
ख़ार मतलूब जो होवे तो गुलिस्ताँ माँगूँ
दोस्तों से इस क़दर सदमे उठाए जान पर
लख़्त-ए-जिगर को क्यूँकर मिज़्गान-ए-तर सँभाले
ताक़-ए-अबरू हैं पसंद-ए-तब्अ इक दिल-ख़्वाह के
काबा ओ दैर में है किस के लिए दिल जाता
कौन से दिल में मोहब्बत नहीं जानी तेरी
सर शम्अ साँ कटाइए पर दम न मारिए
काट कर पर मुतमइन सय्याद बे-परवा न हो
दिल बहुत तंग रहा करता है
ग़ैरत-ए-महर रश्क-ए-माह हो तुम
आफ़त-ए-जाँ हुई उस रू-ए-किताबी की याद