जो आला-ज़र्फ़ होते हैं हमेशा झुक के मिलते हैं
सुराही सर-निगूँ हो कर भरा करती है पैमाना
Javed Akhtar
Gulzar
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Wasi Shah
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(15735) Peoples Rate This
पयाम्बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआ
फ़स्ल-ए-बहार आई पियो सूफ़ियो शराब
बरहमन खोले हीगा बुत-कदा का दरवाज़ा
ठीक आई तन पे अपने क़बा-ए-बरहनगी
ना-फ़हमी अपनी पर्दा है दीदार के लिए
क़द-ए-सनम सा अगर आफ़रीदा होना था
बे-गिनती बोसे लेंगे रुख़-ए-दिल-पसंद के
बंदिश-ए-अल्फ़ाज़ जड़ने से निगूँ के कम नहीं
जोश-ओ-ख़रोश पर है बहार-ए-चमन हनूज़
ख़ार मतलूब जो होवे तो गुलिस्ताँ माँगूँ
हुस्न-ए-परी इक जल्वा-ए-मस्ताना है उस का
ज़िंदे वही हैं जो कि हैं तुम पर मरे हुए