फ़स्ल-ए-बहार आई पियो सूफ़ियो शराब
बस हो चुकी नमाज़ मुसल्ला उठाइए
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Wasi Shah
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3000) Peoples Rate This
कूचा-ए-दिलबर में मैं बुलबुल चमन में मस्त है
आख़िर-ए-कार चले तीर की रफ़्तार क़दम
दिल-लगी अपनी तिरे ज़िक्र से किस रात न थी
पीरी से मिरा नौ दिगर-हाल हुआ है
बर्क़ को उस पर अबस गिरने की हैं तय्यारियाँ
शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ था
सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या
ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते
तब्ल-ओ-अलम ही पास हैं अपने न मुल्क-ओ-माल
यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया
आश्ना गोश से उस गुल के सुख़न है किस का
तब्ल-ओ-अलम ही पास है अपने न मुल्क ओ माल