शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ था
बग़ल में सनम था ख़ुदा मेहरबाँ था
Rahat Indori
Javed Akhtar
Anwar Masood
Gulzar
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Habib Jalib
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(943) Peoples Rate This
ऐ फ़लक कुछ तो असर हुस्न-ए-अमल में होता
सिवाए रंज कुछ हासिल नहीं है इस ख़राबे में
तार-तार-ए-पैरहन में भर गई है बू-ए-दोस्त
क़ामत तिरी दलील क़यामत की हो गई
शोहरा-ए-आफ़ाक़ मुझ सा कौन सा दीवाना है
बर्क़ को उस पर अबस गिरने की हैं तय्यारियाँ
हुस्न-ए-परी इक जल्वा-ए-मस्ताना है उस का
हमेशा मैं ने गरेबाँ को चाक चाक किया
पिसे दिल उस की चितवन पर हज़ारों
आशिक़ हूँ मैं नफ़रत है मिरे रंग को रू से
पयाम्बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआ
बंदिश-ए-अल्फ़ाज़ जड़ने से निगूँ के कम नहीं