ऐ फ़लक कुछ तो असर हुस्न-ए-अमल में होता
शीशा इक रोज़ तो वाइज़ के बग़ल में होता
Gulzar
Wasi Shah
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(808) Peoples Rate This
हुस्न किस रोज़ हम से साफ़ हुआ
मस्त हाथी है तिरी चश्म-ए-सियह-मस्त ऐ यार
करता है क्या ये मोहतसिब-ए-संग-दिल ग़ज़ब
मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ रहें जाम सफ़ेद
जो आला-ज़र्फ़ होते हैं हमेशा झुक के मिलते हैं
इस के कूचे में मसीहा हर सहर जाता रहा
बला-ए-जाँ मुझे हर एक ख़ुश-जमाल हुआ
वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा
नाज़-ओ-अदा है तुझ से दिल-आराम के लिए
लिबास-ए-यार को मैं पारा-पारा क्या करता
तब्ल-ओ-अलम ही पास हैं अपने न मुल्क-ओ-माल
आबले पावँ के क्या तू ने हमारे तोड़े