करता है क्या ये मोहतसिब-ए-संग-दिल ग़ज़ब
शीशों के साथ दिल न कहीं चूर चूर हों
Anwar Masood
Jaun Eliya
Javed Akhtar
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Parveen Shakir
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Ahmad Faraz
Allama Iqbal
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हर शब शब-ए-बरात है हर रोज़ रोज़-ए-ईद
वो नाज़नीं ये नज़ाकत में कुछ यगाना हुआ
शीरीं के शेफ़्ता हुए परवेज़ ओ कोहकन
ऐ जुनूँ होते हैं सहरा पर उतारे शहर से
दिल की कुदूरतें अगर इंसाँ से दूर हों
रफ़्तगाँ का भी ख़याल ऐ अहल-ए-आलम कीजिए
रुख़ ओ ज़ुल्फ़ पर जान खोया किया
दीवानगी ने क्या क्या आलम दिखा दिए हैं
उन्नाब-ए-लब का अपने मज़ा कुछ न पूछिए
बुलबुल गुलों से देख के तुझ को बिगड़ गया
वही चितवन की ख़ूँ-ख़्वारी जो आगे थी सो अब भी है
ख़ुदा दराज़ करे उम्र चर्ख़-ए-नीली की