शीरीं के शेफ़्ता हुए परवेज़ ओ कोहकन
शाएर हूँ मैं ये कहता हूँ मज़मून लड़ गया
Javed Akhtar
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ख़्वाहाँ तिरे हर रंग में ऐ यार हमीं थे
तिरे अबरू-ए-पेवस्ता का आलम में फ़साना है
अमरद-परस्त है तो गुलिस्ताँ की सैर कर
ख़ुदा दराज़ करे उम्र चर्ख़-ए-नीली की
क़द-ए-सनम सा अगर आफ़रीदा होना था
कूचा-ए-यार में हो रौशनी अपने दम की
मिरे दिल को शौक़-ए-फ़ुग़ाँ नहीं मिरे लब तक आती दुआ नहीं
आशिक़ हूँ मैं नफ़रत है मिरे रंग को रू से
फ़रेब-ए-हुस्न से गब्र-ओ-मुसलमाँ का चलन बिगड़ा
तब्ल-ओ-अलम ही पास है अपने न मुल्क ओ माल
बयाँ ख़्वाब की तरह जो कर रहा है
उस बला-ए-जाँ से 'आतिश' देखिए क्यूँकर बने