ख़ुदा दराज़ करे उम्र चर्ख़-ए-नीली की
ये बेकसों के मज़ारों का शामियाना है
Anwar Masood
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आश्ना गोश से उस गुल के सुख़न है किस का
वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा
न पूछ हाल मिरा चोब-ए-ख़ुश्क-ए-सहरा हूँ
आइना सीना-ए-साहब-नज़राँ है कि जो था
हुस्न किस रोज़ हम से साफ़ हुआ
दिल की कुदूरतें अगर इंसाँ से दूर हों
तिरे अबरू-ए-पेवस्ता का आलम में फ़साना है
क़ैद-ए-मज़हब की गिरफ़्तारी से छुट जाता है
जौहर नहीं हमारे हैं सय्याद पर खुले
सूरत से इस की बेहतर सूरत नहीं है कोई
भरा है शीशा-ए-दिल को नई मोहब्बत से
दिल शहीद-ए-रह-ए-दामान न हुआ था सो हुआ