अमरद-परस्त है तो गुलिस्ताँ की सैर कर
हर नौनिहाल रश्क है याँ ख़ुर्द-साल का
Rahat Indori
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Gulzar
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(842) Peoples Rate This
कूचा-ए-दिलबर में मैं बुलबुल चमन में मस्त है
हुस्न-ए-परी इक जल्वा-ए-मस्ताना है उस का
कोई अच्छा नहीं होता है बरी चालों से
बरहमन खोले हीगा बुत-कदा का दरवाज़ा
तब्ल-ओ-अलम ही पास हैं अपने न मुल्क-ओ-माल
कोई तो दोश से बार-ए-सफ़र उतारेगा
ईद-ए-नौ-रोज़ दिल अपना भी कभी ख़ुश करते
जोश-ओ-ख़रोश पर है बहार-ए-चमन हनूज़
बंदिश-ए-अल्फ़ाज़ जड़ने से निगूँ के कम नहीं
मैं उस गुलशन का बुलबुल हूँ बहार आने नहीं पाती
इस के कूचे में मसीहा हर सहर जाता रहा
ताक़-ए-अबरू हैं पसंद-ए-तब्अ इक दिल-ख़्वाह के