वही चितवन की ख़ूँ-ख़्वारी जो आगे थी सो अब भी है

वही चितवन की ख़ूँ-ख़्वारी जो आगे थी सो अब भी है

तिरी आँखों की बीमारी जो आगे थी सो अब भी है

वही नश्व-ओ-नुमा-ए-सब्ज़ा है गोर-ए-ग़रीबाँ पर

हवा-ए-चर्ख़-ए-ज़ंगारी जो आगे थी सो अब भी है

तअल्लुक़ है वही ता-हाल उन ज़ुल्फ़ों के सौदे से

सलासिल की गिरफ़्तारी जो आगे थी सो अब भी है

वही सर का पटकना है वही रोना है दिन भर का

वही रातों की बेदारी जो आगे थी सो अब भी है

रिवाज-ए-इश्क़ के आईं वही हैं किश्वर-ए-दिल में

रह-ओ-रस्म-ए-वफ़ा जारी जो आगे थी सो अब भी है

वही जी का जलाना है पकाना है वही दिल का

वो उस की गर्म-बाज़ारी जो आगे थी सो अब भी है

नियाज़-ए-ख़ादिमाना है वही फ़ज़्ल-ए-इलाही से

बुतों की नाज़-बरदारी जो आगे थी सो अब भी है

फ़िराक़-ए-यार में जिस तरह से मरता था मरता हूँ

वो रूह ओ तन की बे-ज़ारी जो आगे थी सो अब भी है

वही साैदा-ए-काकुल का है आलम जो कि साबिक़ था

ये शब बीमार पर भारी जो आगे थी सो अब भी है

जुनूँ की गर्म-जोशी है वही दीवानों से अपनी

वही दाग़ों की गुल-कारी जो आगे थी सो अब भी है

वही बाज़ार-ए-गर्मी है मोहब्बत की हनूज़ 'आतिश'

वो यूसुफ़ की ख़रीदारी जो आगे थी सो अब भी है

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