सफ़र है शर्त मुसाफ़िर-नवाज़ बहुतेरे
हज़ार-हा शजर-ए-साया-दार राह में है
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पयम्बर मैं नहीं आशिक़ हूँ जानी
मुंतज़िर था वो तो जुस्त-ओ-जू में ये आवारा था
दिल बहुत तंग रहा करता है
ऐसी ऊँची भी तो दीवार नहीं घर की तिरे
आइना सीना-ए-साहब-नज़राँ है कि जो था
तार-तार-ए-पैरहन में भर गई है बू-ए-दोस्त
हमारा काबा-ए-मक़्सूद तेरा ताक़-ए-अबरू है
बाज़ार-ए-दहर में तिरी मंज़िल कहाँ न थी
अमरद-परस्त है तो गुलिस्ताँ की सैर कर
उस बला-ए-जाँ से 'आतिश' देखिए क्यूँकर बने
आफ़त-ए-जाँ हुई उस रू-ए-किताबी की याद
तब्ल-ओ-अलम ही पास है अपने न मुल्क ओ माल