हमारा काबा-ए-मक़्सूद तेरा ताक़-ए-अबरू है
तिरी चश्म-ए-सियह को हम ने आहु-ए-हरम पाया
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सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या
यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया
मिरे दिल को शौक़-ए-फ़ुग़ाँ नहीं मिरे लब तक आती दुआ नहीं
लख़्त-ए-जिगर को क्यूँकर मिज़्गान-ए-तर सँभाले
हाजत नहीं बनाओ की ऐ नाज़नीं तुझे
हमेशा मैं ने गरेबाँ को चाक चाक किया
ख़्वाहाँ तिरे हर रंग में ऐ यार हमीं थे
जोश-ओ-ख़रोश पर है बहार-ए-चमन हनूज़
सख़्ती-ए-राह खींचिए मंज़िल के शौक़ में
ऐसी वहशत नहीं दिल को कि सँभल जाऊँगा
किसी ने मोल न पूछा दिल-ए-शिकस्ता का
ख़ुदा दराज़ करे उम्र चर्ख़-ए-नीली की