हाजत नहीं बनाओ की ऐ नाज़नीं तुझे
ज़ेवर है सादगी तिरे रुख़्सार के लिए
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शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ था
बला-ए-जाँ मुझे हर एक ख़ुश-जमाल हुआ
जब के रुस्वा हुए इंकार है सच बात में क्या
ईद-ए-नौ-रोज़ दिल अपना भी कभी ख़ुश करते
आइना सीना-ए-साहब-नज़राँ है कि जो था
दिल-लगी अपनी तिरे ज़िक्र से किस रात न थी
हुस्न-ए-परी इक जल्वा-ए-मस्ताना है उस का
यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया
कूचा-ए-यार में हो रौशनी अपने दम की
शोहरा-ए-आफ़ाक़ मुझ सा कौन सा दीवाना है
दिल शहीद-ए-रह-ए-दामान न हुआ था सो हुआ
उठ गई हैं सामने से कैसी कैसी सूरतें