यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया
रात भर ताला-ए-बेदार ने सोने न दिया
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ऐ जुनूँ होते हैं सहरा पर उतारे शहर से
दिल-लगी अपनी तिरे ज़िक्र से किस रात न थी
न गोर-ए-सिकंदर न है क़ब्र-ए-दारा
ऐ सनम जिस ने तुझे चाँद सी सूरत दी है
रुजूअ बंदा की है इस तरह ख़ुदा की तरफ़
दिल बहुत तंग रहा करता है
फ़र्त-ए-शौक़ उस बुत के कूचे में लगा ले जाएगा
सर काट के कर दीजिए क़ातिल के हवाले
शीरीं के शेफ़्ता हुए परवेज़ ओ कोहकन
चमन में शब को जो वो शोख़ बे-नक़ाब आया
वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा
मय-कदे में नश्शा की ऐनक दिखाती है मुझे