न गोर-ए-सिकंदर न है क़ब्र-ए-दारा
मिटे नामियों के निशाँ कैसे कैसे
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जब के रुस्वा हुए इंकार है सच बात में क्या
वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा
आइना सीना-ए-साहब-नज़राँ है कि जो था
तोड़ कर तार-ए-निगह का सिलसिला जाता रहा
पा-ब-गिल बे-ख़ुदी-ए-शौक़ से मैं रहता था
शोहरा-ए-आफ़ाक़ मुझ सा कौन सा दीवाना है
कोई इश्क़ में मुझ से अफ़्ज़ूँ न निकला
ईद-ए-नौ-रोज़ दिल अपना भी कभी ख़ुश करते
आइना-ख़ाना करेंगे दिल-ए-नाकाम को हम
शीरीं के शेफ़्ता हुए परवेज़ ओ कोहकन
अजब तेरी है ऐ महबूब सूरत
हंगाम-ए-नज़'अ महव हूँ तेरे ख़याल का