मिरी तरह से मह-ओ-महर भी हैं आवारा
किसी हबीब की ये भी हैं जुस्तुजू करते
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तुर्रा उसे जो हुस्न-ए-दिल-आज़ार ने किया
आए भी लोग बैठे भी उठ भी खड़े हुए
कोई तो दोश से बार-ए-सफ़र उतारेगा
आश्ना गोश से उस गुल के सुख़न है किस का
बुलबुल को ख़ार ख़ार-ए-दबिस्ताँ है इन दिनों
इंसाफ़ की तराज़ू में तौला अयाँ हुआ
इस शश-जिहत में ख़ूब तिरी जुस्तुजू करें
किसी ने मोल न पूछा दिल-ए-शिकस्ता का
यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया
शोहरा-ए-आफ़ाक़ मुझ सा कौन सा दीवाना है
आफ़त-ए-जाँ हुई उस रू-ए-किताबी की याद
कोई अच्छा नहीं होता है बरी चालों से