उठ गई हैं सामने से कैसी कैसी सूरतें
रोइए किस के लिए किस किस का मातम कीजिए
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कूचा-ए-दिलबर में मैं बुलबुल चमन में मस्त है
लख़्त-ए-जिगर को क्यूँकर मिज़्गान-ए-तर सँभाले
कुछ नज़र आता नहीं उस के तसव्वुर के सिवा
काबा ओ दैर में है किस के लिए दिल जाता
तुर्रा उसे जो हुस्न-ए-दिल-आज़ार ने किया
लगे मुँह भी चिढ़ाने देते देते गालियाँ साहब
बाज़ार-ए-दहर में तिरी मंज़िल कहाँ न थी
कोई अच्छा नहीं होता है बरी चालों से
दौलत-ए-हुस्न की भी है क्या लूट
इलाही एक दिल किस किस को दूँ मैं
यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया
ऐ जुनूँ होते हैं सहरा पर उतारे शहर से