रख के मुँह सो गए हम आतिशीं रुख़्सारों पर
दिल को था चैन तो नींद आ गई अँगारों पर
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हुस्न किस रोज़ हम से साफ़ हुआ
आप की नाज़ुक कमर पर बोझ पड़ता है बहुत
सुन तो सही जहाँ में है तेरा अफ़्साना क्या
वही चितवन की ख़ूँ-ख़्वारी जो आगे थी सो अब भी है
कोई अच्छा नहीं होता है बरी चालों से
मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ रहें जाम सफ़ेद
हुस्न-ए-परी इक जल्वा-ए-मस्ताना है उस का
दिल शहीद-ए-रह-ए-दामान न हुआ था सो हुआ
फ़स्ल-ए-बहार आई पियो सूफ़ियो शराब
गुल आते हैं हस्ती में अदम से हमा-तन-गोश
कौन से दिल में मोहब्बत नहीं जानी तेरी
पयाम-बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआ