आतिश-ए-मस्त जो मिल जाए तो पूछूँ उस से
तू ने कैफ़िय्यत उठाई है ख़राबात में क्या
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सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या
फ़स्ल-ए-बहार आई पियो सूफ़ियो शराब
सुन तो सही जहाँ में है तेरा अफ़्साना क्या
चमन में शब को जो वो शोख़ बे-नक़ाब आया
हुबाब-आसा में दम भरता हूँ तेरी आश्नाई का
है जब से दस्त-ए-यार में साग़र शराब का
क़िस्सा-ए-सिलसिला-ए-ज़ुल्फ़ न कहना बेहतर
सिवाए रंज कुछ हासिल नहीं है इस ख़राबे में
उठ गई हैं सामने से कैसी कैसी सूरतें
बर्क़ को उस पर अबस गिरने की हैं तय्यारियाँ
जाँ-बख़्श लब के इश्क़ में ईज़ा उठाइए
अमरद-परस्त है तो गुलिस्ताँ की सैर कर