जो देखते तिरी ज़ंजीर-ए-ज़ुल्फ़ का आलम
असीर होने की आज़ाद आरज़ू करते
Mir Taqi Mir
Gulzar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Jaun Eliya
Habib Jalib
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2875) Peoples Rate This
दीवानगी ने क्या क्या आलम दिखा दिए हैं
आशिक़ हूँ मैं नफ़रत है मिरे रंग को रू से
पीरी से मिरा नौ दिगर-हाल हुआ है
दौलत-ए-हुस्न की भी है क्या लूट
किसी ने मोल न पूछा दिल-ए-शिकस्ता का
कोई अच्छा नहीं होता है बरी चालों से
पयाम्बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआ
ख़्वाहाँ तिरे हर रंग में ऐ यार हमीं थे
सख़्ती-ए-राह खींचिए मंज़िल के शौक़ में
आइना-ख़ाना करेंगे दिल-ए-नाकाम को हम
तुर्रा उसे जो हुस्न-ए-दिल-आज़ार ने किया
न जब तक कोई हम-प्याला हो मैं मय नहीं पीता