देखो तो एक जा पे ठहरती नहीं नज़र
लपका पड़ा है आँख को क्या देख-भाल का
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नुमूद-ए-क़ुदरत-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं
सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ'ज़
दिल में तिरे ऐ निगार क्या है
रिंद-मशरब हैं किसी से हमें कुछ काम नहीं
सर्व-क़द लाला-रुख़ ओ ग़ुंचा-दहन याद आया
हमें तो उन की मोहब्बत है कोई कुछ समझे
बुत-ए-ग़ुंचा-दहन पे निसार हूँ मैं नहीं झूट कुछ इस में ख़ुदा की क़सम
सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता
क्या बनाए साने-ए-क़ुदरत ने प्यारे हाथ पाँव
मुद्दत के बा'द इस ने लिखा मेरे नाम ख़त
ज़ाहिदो कअ'बे की जानिब खींचते हो क्यूँ मुझे
किसी को कोसते क्यूँ हो दुआ अपने लिए माँगो