सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ'ज़
बुतों का ज़िक्र ख़ुदा की किताब में देखा
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जुनूँ के हाथ से है इन दिनों गरेबाँ तंग
नुमूद-ए-क़ुदरत-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं
हज़ार जान से साहब निसार हम भी हैं
वो कहते हैं उट्ठो सहर हो गई
वादा-ए-बादा-ए-अतहर का भरोसा कब तक
दो-शाला शाल कश्मीरी अमीरों को मुबारक हो
सर्व-क़द लाला-रुख़ ओ ग़ुंचा-दहन याद आया
दिल में तिरे ऐ निगार क्या है
दश्त-ए-वहशत-ख़ेज़ में उर्यां है 'आग़ा' आप ही
हाथ दोनों मिरी गर्दन में हमाइल कीजे
किसी सय्याद की पड़ जाए न चिड़िया पे नज़र