किसी सय्याद की पड़ जाए न चिड़िया पे नज़र
आप सरकाएँ न महरम से दुपट्टा अपना
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सर्व-क़द लाला-रुख़ ओ ग़ुंचा-दहन याद आया
कुछ ऐसी पिला दे मुझे ऐ पीर-ए-मुग़ाँ आज
ओ सितमगर तिरी तलवार का धब्बा छट जाए
क्या बनाए साने-ए-क़ुदरत ने प्यारे हाथ पाँव
ता-मर्ग मुझ से तर्क न होगी कभी नमाज़
हाथ दोनों मिरी गर्दन में हमाइल कीजे
दो-शाला शाल कश्मीरी अमीरों को मुबारक हो
हज़ार जान से साहब निसार हम भी हैं
बुत-ए-ग़ुंचा-दहन पे निसार हूँ मैं नहीं झूट कुछ इस में ख़ुदा की क़सम
तिरे जलाल से ख़ुर्शीद को ज़वाल हुआ
चाहत ग़म्ज़े जता रही है