आग़ा अकबराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आग़ा अकबराबादी

आग़ा अकबराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आग़ा अकबराबादी
नामआग़ा अकबराबादी
अंग्रेज़ी नामAagha Akbarabadi

ज़ाहिदो कअ'बे की जानिब खींचते हो क्यूँ मुझे

वादा-ए-बादा-ए-अतहर का भरोसा कब तक

तवाफ़-ए-काबा को क्या जाएँ हज नहीं वाजिब

ता-मर्ग मुझ से तर्क न होगी कभी नमाज़

शिकायत मुझ को दोनों से है नासेह हो कि वाइज़ हो

शराब पीते हैं तो जागते हैं सारी रात

सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ'ज़

रिंद-मशरब हैं किसी से हमें कुछ काम नहीं

रक़ीब क़त्ल हुआ उस की तेग़-ए-अबरू से

ओ सितमगर तिरी तलवार का धब्बा छट जाए

मय-कशों में न कोई मुझ सा नमाज़ी होगा

मय-कशो देर है क्या दौर चले बिस्मिल्लाह

कुछ ऐसी पिला दे मुझे ऐ पीर-ए-मुग़ाँ आज

किसी सय्याद की पड़ जाए न चिड़िया पे नज़र

किसी को कोसते क्यूँ हो दुआ अपने लिए माँगो

जुनूँ के हाथ से है इन दिनों गरेबाँ तंग

जी चाहता है उस बुत-ए-काफ़िर के इश्क़ में

इन परी-रूयों की ऐसी ही अगर कसरत रही

हम न कहते थे कि सौदा ज़ुल्फ़ का अच्छा नहीं

हाथ दोनों मिरी गर्दन में हमाइल कीजे

हमें तो उन की मोहब्बत है कोई कुछ समझे

दो-शाला शाल कश्मीरी अमीरों को मुबारक हो

देखो तो एक जा पे ठहरती नहीं नज़र

देखिए पार हो किस तरह से बेड़ा अपना

दश्त-ए-वहशत-ख़ेज़ में उर्यां है 'आग़ा' आप ही

दर-ब-दर फिरने ने मेरी क़द्र खोई ऐ फ़लक

बुत नज़र आएँगे माशूक़ों की कसरत होगी

वो कहते हैं उट्ठो सहर हो गई

तिरे जलाल से ख़ुर्शीद को ज़वाल हुआ

सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता

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