देखिए पार हो किस तरह से बेड़ा अपना
मुझ को तूफ़ाँ की ख़बर दीदा-ए-तर देते हैं
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शिकायत मुझ को दोनों से है नासेह हो कि वाइज़ हो
मलते हैं हाथ, हाथ लगेंगे अनार कब
बुत-ए-ग़ुंचा-दहन पे निसार हूँ मैं नहीं झूट कुछ इस में ख़ुदा की क़सम
हज़ार जान से साहब निसार हम भी हैं
मय-कशों में न कोई मुझ सा नमाज़ी होगा
रक़ीब क़त्ल हुआ उस की तेग़-ए-अबरू से
मद्दाह हूँ मैं दिल से मोहम्मद की आल का
जी चाहता है उस बुत-ए-काफ़िर के इश्क़ में
वादा-ए-बादा-ए-अतहर का भरोसा कब तक
दो-शाला शाल कश्मीरी अमीरों को मुबारक हो
ज़ाहिदो कअ'बे की जानिब खींचते हो क्यूँ मुझे