तवाफ़-ए-काबा को क्या जाएँ हज नहीं वाजिब
कलाल-ख़ाने के कुछ दीन-दार हम भी हैं
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Parveen Shakir
Gulzar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
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Friends Poetry
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मय-कशों में न कोई मुझ सा नमाज़ी होगा
मलते हैं हाथ, हाथ लगेंगे अनार कब
ता-मर्ग मुझ से तर्क न होगी कभी नमाज़
शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना
शराब पीते हैं तो जागते हैं सारी रात
वादा-ए-बादा-ए-अतहर का भरोसा कब तक
रक़ीब क़त्ल हुआ उस की तेग़-ए-अबरू से
दौर साग़र का चले साक़ी दोबारा एक और
सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ'ज़
पाँव फिर होवेंगे और दश्त-ए-मुग़ीलाँ होगा
मज़ा है इम्तिहाँ का आज़मा ले जिस का जी चाहे
किसी को कोसते क्यूँ हो दुआ अपने लिए माँगो