नज़र Poetry (page 69)

नसीम-ए-सुब्ह-ए-बहार आए दिल-ए-हज़ीं को क़रार आए

हनीफ़ फ़ौक़

क्या नज़र की हुश्यारी ख़ुद-असीर-ए-मस्ती है

हनीफ़ फ़ौक़

चश्म-ए-पुर-नम अभी मरहून-ए-असर हो न सकी

हनीफ़ फ़ौक़

सब नज़र आते हैं चेहरे गर्द गर्द

हनीफ़ कैफ़ी

मुद्दतें गुज़रीं मुलाक़ात हुई थी तुम से

हनीफ़ कैफ़ी

थे मिरे ज़ख़्मों के आईने तमाम

हनीफ़ कैफ़ी

की नज़र मैं ने जब एहसास के आईने में

हनीफ़ कैफ़ी

आरज़ूएँ कमाल-आमादा

हनीफ़ कैफ़ी

जल्वों का जो तेरे कोई प्यासा नज़र आया

हनीफ़ अख़गर

इश्क़ जब मंज़िल-ए-आख़िर से गुज़रता होगा

हनीफ़ अख़गर

दिल की मिरे बिसात क्या एक दिया बुझा हुआ

हनीफ़ अख़गर

देखना ये इश्क़ में हुस्न-ए-पज़ीराई के रंग

हनीफ़ अख़गर

अज़्म-ए-सफ़र से पहले भी और ख़त्म-ए-सफ़र से आगे भी

हनीफ़ अख़गर

असर देखा दुआ जब रात-भर की

हामिदुल्लाह अफ़सर

ख़ुद ख़मोशी के हिसारों में रहे

हामिदी काश्मीरी

उल्टा चक्कर

हमीदा शाहीन

हमारी ख़्वाहिशों में सरगिरानी भी कहाँ थी

हामिद ज़हूर

क़बा-ए-गर्द हूँ आता है ये ख़याल मुझे

हामिद जीलानी

सहरा में हर तरफ़ है वही शोर-ए-अल-अतश

हामिद हुसैन हामिद

वो चाल चल कि ज़माना भी साथ चलने लगे

हमीद नागपुरी

ख़ुद अपने आप से हम बे-ख़बर से गुज़रे हैं

हमीद नागपुरी

हर ज़र्रा चश्म-ए-शौक़-ए-सर-ए-रहगुज़र है आज

हमीद नागपुरी

फ़िक्र पाबंदी-ए-हालात से आगे न बढ़ी

हमीद नागपुरी

नियाज़-ओ-नाज़ का पैकर न अर्श पर ठहरा

हमीद कौसर

फिर गई इक और ही दुनिया नज़र के सामने

हमीद जालंधरी

आ के वो मुझ ख़स्ता-जाँ पर यूँ करम फ़रमा गया

हमीद जालंधरी

शहर-ए-आरज़ू

हमीद अलमास

न सताइश की तमन्ना

हमीद अलमास

उस के करम से है न तुम्हारी नज़र से है

हमीद अलमास

घर है तो दर भी होगा दीवार भी रहेगी

हमीद अलमास

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