फिर गई इक और ही दुनिया नज़र के सामने
बैठे बैठे क्या बताऊँ क्या मुझे याद आ गया
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किस वहम में असीर तिरे मुब्तला हुए
कल शाम लब-ए-बाम जो वो जल्वा-नुमा था
भूली नहीं उजड़े हुए गुलशन की बहारें
कैसा ग़ज़ब ये ऐ दिल-ए-पुर-जोश कर दिया
किस शान से गए हैं शहीदान-ए-कू-ए-यार
आ के वो मुझ ख़स्ता-जाँ पर यूँ करम फ़रमा गया
सीने में राज़-ए-इश्क़ छुपाया न जाएगा
उन की जफ़ाओं पर भी वफ़ा का हुआ गुमाँ
ऐ दोस्त दर्द-ए-दिल का मुदावा किया न जाए
हुई मुद्दत कि उन को ख़्वाब में भी अब नहीं देखा