भूली नहीं उजड़े हुए गुलशन की बहारें
हाँ याद हैं वो दिन कि हमारा भी ख़ुदा था
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ऐ दोस्त दर्द-ए-दिल का मुदावा किया न जाए
कभी अपनों की यूरिश थी कभी ग़ैरों का रेला था
किस शान से गए हैं शहीदान-ए-कू-ए-यार
सीने में राज़-ए-इश्क़ छुपाया न जाएगा
उन की जफ़ाओं पर भी वफ़ा का हुआ गुमाँ
कैसा ग़ज़ब ये ऐ दिल-ए-पुर-जोश कर दिया
आने लगे हैं वो भी अयादत के वास्ते
आ के वो मुझ ख़स्ता-जाँ पर यूँ करम फ़रमा गया
किस वहम में असीर तिरे मुब्तला हुए
कल शाम लब-ए-बाम जो वो जल्वा-नुमा था