नज़र Poetry (page 66)

वहम-ओ-गुमाँ में भी कहाँ ये इंक़िलाब था

हयात लखनवी

सूने सूने उजड़े उजड़े से घरों में ले चलो

हयात लखनवी

कई सितारे यहाँ टूटते बिखरते हैं

हयात लखनवी

कब क़ाबिल-ए-तक़लीद है किरदार हमारा

हयात लखनवी

चमन वही है घटाएँ वही बहार वही

हया लखनवी

तू ने वहदत को कर दिया कसरत

हातिम अली मेहर

मजमा' में रक़ीबों के खुला था तिरा जूड़ा

हातिम अली मेहर

दीवाना हूँ पर काम में होशियार हूँ अपने

हातिम अली मेहर

पोशाक-ए-सियह में रुख़-ए-जानाँ नज़र आया

हातिम अली मेहर

कोई ले कर ख़बर नहीं आता

हातिम अली मेहर

बुतों का ज़िक्र करो वाइज़ ख़ुदा को किस ने देखा है

हातिम अली मेहर

ये ख़ाकी आग से हो कर यहाँ पे पहुँचा है

हस्सान अहमद आवान

रू-ए-ज़ेबा नज़र नहीं आता

हसरत शरवानी

ख़ुशा वो बाग़ महकती हो जिस में बू तेरी

हसरत शरवानी

कहाँ हम कहाँ वस्ल-ए-जानाँ की 'हसरत'

हसरत मोहानी

छुप नहीं सकती छुपाने से मोहब्बत की नज़र

हसरत मोहानी

बरसात के आते ही तौबा न रही बाक़ी

हसरत मोहानी

वस्ल की बनती हैं इन बातों से तदबीरें कहीं

हसरत मोहानी

रोग दिल को लगा गईं आँखें

हसरत मोहानी

रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम

हसरत मोहानी

क्या तुम को इलाज-ए-दिल-ए-शैदा नहीं आता

हसरत मोहानी

क्या काम उन्हें पुर्सिश-ए-अरबाब-ए-वफ़ा से

हसरत मोहानी

ख़ू समझ में नहीं आती तिरे दीवानों की

हसरत मोहानी

कैसे छुपाऊँ राज़-ए-ग़म दीदा-ए-तर को क्या करूँ

हसरत मोहानी

जो वो नज़र बसर-ए-लुत्फ़ आम हो जाए

हसरत मोहानी

हर हाल में रहा जो तिरा आसरा मुझे

हसरत मोहानी

हमें वक़्फ़-ए-ग़म सर-ब-सर देख लेते

हसरत मोहानी

है मश्क़-ए-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भी

हसरत मोहानी

दिल को ख़याल-ए-यार ने मख़्मूर कर दिया

हसरत मोहानी

देखना भी तो उन्हें दूर से देखा करना

हसरत मोहानी

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