नज़र Poetry (page 64)

अजीब कर्ब-ए-मुसलसल दिल-ओ-नज़र में रहा

इफ़्फ़त ज़र्रीं

रह-ए-जुस्तुजू में भटक गए तो किसी से कोई गिला नहीं

इफ़्फ़त अब्बास

नज़र जो आया उस पे ए'तिबार कर लिया गया

इफ़्फ़त अब्बास

ख़ूँ में तर सब्र की चादर कहाँ ले जाओगे

इफ़्फ़त अब्बास

हाथ दुनिया का भी है दिल की ख़राबी में बहुत

इदरीस बाबर

दर्द का दिल का शाम का बज़्म का मय का जाम का

इदरीस बाबर

रब्त असीरों को अभी उस गुल-ए-तर से कम है

इदरीस बाबर

करते फिरते हैं ग़ज़ालाँ तिरा चर्चा साहब

इदरीस बाबर

दिल में है इत्तिफ़ाक़ से दश्त भी घर के साथ साथ

इदरीस बाबर

ज़िंदगी वादी ओ सहरा का सफ़र है क्यूँ है

इब्राहीम अश्क

उस की इक दुनिया हूँ मैं और मेरी इक दुनिया है वो

इब्राहीम अश्क

अना ने टूट के कुछ फ़ैसला किया ही नहीं

इब्राहीम अश्क

मिरी नज़र में है अंजाम इस तआक़ुब का

इब्राहीम होश

यूँ तो पत्थर बहुत से देखे हैं

इब्न-ए-मुफ़्ती

फिर से वो लौट कर नहीं आया

इब्न-ए-मुफ़्ती

कर बुरा तो भला नहीं होता

इब्न-ए-मुफ़्ती

हम से मिलते थे सितारे आप के

इब्न-ए-मुफ़्ती

हुस्न सब को ख़ुदा नहीं देता

इब्न-ए-इंशा

शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती

इब्न-ए-इंशा

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

इब्न-ए-इंशा

जंगल जंगल शौक़ से घूमो दश्त की सैर मुदाम करो

इब्न-ए-इंशा

उस का चेहरा उदास है 'माजिद'

हुसैन माजिद

तूफ़ाँ कोई नज़र में न दरिया उबाल पर

हुसैन माजिद

शाम छत पर उतर गई होगी

हुसैन माजिद

माहौल से जैसे कि घुटन होने लगी है

हुसैन ताज रिज़वी

है मेरे गिर्द यक़ीनन कहीं हिसार सा कुछ

हुसैन ताज रिज़वी

ढली जो शाम नज़र से उतर गया सूरज

हुसैन ताज रिज़वी

रौशनी में खोई गई रौशनी

हुसैन आबिद

राहत ओ रंज से जुदा हो कर

हुसैन आबिद

वक़्त गर्दिश में ब-अंदाज़-ए-दिगर है कि जो था

हुरमतुल इकराम

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