सुन के सारी दास्तान-ए-रंज-ओ-ग़म
कह दिया उस ने कि फिर हम क्या करें
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1387) Peoples Rate This
हैं निकहत-ए-गुल बाग़ में ऐ बाद-ए-सबा हम
अदू के ताकने को तुम इधर देखो उधर देखो
अब आप कोई काम सिखा दीजिए हम को
मुँह फेर कर वो कहते हैं बस मान जाइए
लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें
तकिया हटता नहीं पहलू से ये क्या है 'बेख़ुद'
टूटे पड़ते हैं ये हैं किस के ख़रीदार तमाम
हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा
न सही आप हमारे जो मुक़द्दर में नहीं
अदाएँ देखने बैठे हो क्या आईने में अपनी
तुम्हारे हाथ ख़ाली जेब ख़ाली ज़ुल्फ़ ख़ाली थी