तुम्हारे हाथ ख़ाली जेब ख़ाली ज़ुल्फ़ ख़ाली थी
न थे तुम चोर दिल के लो इधर देखो ये क्या निकला
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आ गए फिर तिरे अरमान मिटाने हम को
कोई इस तरह से मिलने का मज़ा मिलता है
मुझ को न दिल पसंद न वो बेवफ़ा पसंद
नमक भर कर मिरे ज़ख़्मों में तुम क्या मुस्कुराते हो
तुम्हें हम चाहते तो हैं मगर क्या
मिला के ख़ाक में सर्मा-ए-दिल-ए-'बेख़ुद'
रक़ीबों के लिए अच्छा ठिकाना हो गया पैदा
तुम हमारे दिल-ए-शैदा को नहीं जानते क्या
बेचने आए कोई क्या दिल-ए-शैदा ले कर
बज़्म-ए-दुश्मन में बुलाते हो ये क्या करते हो
ये कह के मेरे सामने टाला रक़ीब को
जादू है या तिलिस्म तुम्हारी ज़बान में