तकिया हटता नहीं पहलू से ये क्या है 'बेख़ुद'
कोई बोतल तो नहीं तुम ने छुपा रक्खी है
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क़यामत है तिरी उठती जवानी
वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी
तुम्हारी याद मेरा दिल ये दिनों चलते पुर्ज़े हैं
और साक़ी पिला अभी क्या है
बेताब रहें हिज्र में कुछ दिल तो नहीं हम
अब आप कोई काम सिखा दीजिए हम को
सौदा-ए-इश्क़ और है वहशत कुछ और शय
जादू है या तिलिस्म तुम्हारी ज़बान में
उठे तिरी महफ़िल से तो किस काम के उठ्ठे
आप शर्मा के न फ़रमाएँ हमें याद नहीं
शौक़ अपना आप मैं अपनी ज़बाँ से क्यूँ कहूँ
ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है