क्या जानें उन की चाल में एजाज़ है कि सेहर
वो भी उन्हीं से मिल गए जो थे हमारे लोग
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चार दिन की बहार है सारी
थोड़ी तकलीफ़ सही आने में
बंद-ए-क़बा पे हाथ है शरमाए जाते हैं
इश्क़ के फंदे से बचिए ऐ 'हक़ीर'-ए-ख़स्ता-दिल
जानता उस को हूँ दवा की तरह
किस की उस तक रसाई होती है
हक़ारत की निगाहों से न फ़र्श-ए-ख़ाक को देखो
बहार आई है सदमे से हमारा हाल अबतर है
बुत को पूजूँगा सनम-ख़ानों में जा जा के तो मैं
हमारी वो वफ़ादारी कि तौबा
दुश्मन हैं वो भी जान के जो हैं हमारे लोग
तिफ़्ली पीरी ओ नौजवानी हेच