ज़रा सी बात पे क्या क्या न खो दिया मैं ने
जो तुम ने खोया है उस का शुमार तुम भी करो
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लबों के सामने ख़ाली गिलास रखते हैं
मेरी दादी
हम से तहज़ीब का दामन नहीं छोड़ा जाता
चिड़िया-ख़ाना
ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है
एक रहें हम
हमारे तन पे कोई क़ीमती क़बा न सही
मिरी मैली हथेली पर तो बचपन से
देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा
कमी ज़रा सी अगर फ़ासले में आ जाए
मुझ में है यही ऐब कि औरों की तरह मैं